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जूठन: ओम प्रकाश वाल्मीकि

जूठन: ओम प्रकाश वाल्मीकि

आत्मकथा शब्द सुनने में बहुत ही अच्छा लगता है, किंतु जब ओम प्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा पढ़ी तो मन में न जा कितने सवाल  पनपने लगे। हम सभी अपने आप को आजाद भारत का वासी कहते हैं। लेकिन ये आजादी होती क्या है? ये क्या मात्र १५ अगस्त और २६ जनवरी को मनाया जाने वाला जश्न है? या फिर अपने विचारों की गुलामी को छुपाने की चालबाजी है? क्या किया जाय इस आजाद भारत का, जहां आज भी इंसान को इंसान नहीं समझा जाता, और आज भी इंसान बद से बदतर जीवन जीने को बाध्य है। हम सभी अपनी सभ्यता, संस्कृति, रिवाजों आदि की दुहाई देते नही थकते। अपनी परंपराओं का बखान हमेशा ही करते रहते हैं। किंतु ये कभी नहीं सोचते कि हम जिस समाज में जी रहे हैं, सांस ले रहे हैं, उस समाज में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनका जीना भी मृत्यु के समान है।

वाल्मीकि जी ने अपनी आत्मकथा में जिन घटनाओं का वर्णन किया है वो ना सिर्फ हमारी आत्मा को झिंझोरती है बल्कि पुस्तक को पढ़ने के क्रम में वर्ग विशेष के प्रति एक सच्ची सहानुभूति भी उत्पन्न करती है। विरले ही होंगे जो उनकी आत्मकथा को पढ़कर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करेंगे।यह पुस्तक हमें वर्ग विशेष की पीड़ा, यातना, उपेक्षा, शोषण, अपमान, जिल्लत और अभावपूर्ण जीवन से रूबरू कराती है।जब हम साहित्य की बात करते हैं, तो कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। वाल्मीकि जी लिखित आत्मकथा जूठन इस बात को पूर्णतः प्रमाणित करता है। ऐसी रचनाओं की जानकारी और हमारे समाज का यथार्थ चित्र आज के युवाओं को पता होना चाहिए। आज का युवा ही कल के समाज का निर्माता है।उसे हमारे दकियानूसी रीति रिवाजों को बदल कर एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए, जिसमे सभी इंसानों को समान अधिकार हो,बोलने, उठने–बैठने, खाने–पीने, पहनने–ओढ़ने, कहीं आने –जाने और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने की आजादी हो। हम और हमारी सोच बदलेगी तभी हम एक उन्नत समाज की स्थापना कर सकते हैं, वरना अंबेडकर ,महात्मा गांधी,ज्योतिबा फुले जैसे महात्माओं का इस समाज की नकारात्मक सोच को बदलने का सपना अधूरा ही रह जायेगा। परिणाम यह होगा कि फिर कोई ओम प्रकाश वाल्मीकि और तुलसीराम जैसा लेखक अपनी आत्मकथा लिखकर समाज को जागरूक बनाने का प्रयास करेगा और हम उसकी रचना को पढ़ने के उपरांत सिर्फ एक सहानुभूति जताकर चुपचाप बैठ जायेंगे।हमे इन लेखकों के जीवन से प्रेरणा लेकर इस वर्ग के उत्थान की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

डॉ मंजुला सुशीला

सहायक प्राध्यापक

हिंदी विभाग

पटना वीमेंस कॉलेज

बेली रोड,पटना–८००००१