गुरु बनाम टीचर
गुरु बनाम टीचर
समाज ने सदा ही शिक्षक को उच्चता के सिंहासन पर बैठाया है और शिक्षक तब तक उस पर आसीन रहेंगे जब तक इस सृष्टि का अस्तित्व है l ‘ गुरु’ शब्द ही अपने आप में गहन अर्थ लिए हुए है-गु = अंधकार, रु = प्रकाश अर्थात् गुरु अपने शिष्य को अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाता है l भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया है l वेदों में भी ‘आचार्य देवो भव ‘ अर्थात् गुरु को देवतुल्य कहा गया है l यहाँ तक कि गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, महेश और परम ब्रह्म के समान कहा गया है –
गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः
प्राचीन काल में गुरु आश्रम में ही शिक्षा प्रदान करते थे l विद्यार्थियों से शुल्क नहीं लिया जाता था l शायद इसलिए भी गुरु – सेवा का अत्यधिक महत्व था l वर्तमान शिक्षा – प्रणाली में आमूल – चूल परिवर्तन हुआ है l आज शिक्षा – व्यवस्था बदल गई, विद्यालयों का स्वरुप बदल गया, छात्रों की अवधारणा बदल गयी, अभिभावकों की भी विचारधारा बदल गयी तो भला इस बदले हुए परिदृश्य में यदि गुरु नहीं बदलें तो वे ‘ अप टु डेट ‘ होकर समय के साथ कैसे चल सकेंगे?
वह भारतभूमि आज कहाँ चली गई जहाँ रामकृष्ण बरसों योग्य शिष्य पाने के लिए प्रार्थना करते रहे? उनके जैसे व्यक्ति को भी उत्तम शिष्य पाने के लिए रो – रोकर प्रार्थना करनी पड़ी थी l भारतभूमि के उस सपूत को संतानहीन रहना मंजूर था, किन्तु बिना शिष्य का रहना मंजूर नहीं था l
भगवान ईसा का कथन स्मरणीय है –
” मेरे अनुयायी लोग मुझसे कहीं अधिक महान हैं और उनकी जूतियाँ होने की योग्यता भी मुझमें नहीं है l “
प्राचीन काल की बात कुछ और थी, आधुनिक काल की बात कुछ और हैl
पहले लोग मातृभूमि की यात्रा भी पैदल ही किया करते थे, अब अंतरिक्ष की यात्रा करके आ रहे हैं l आज ज़मीं बदल गयी , ज़माना बदल गया, ज़माने की हवा भी बदल गयी तो क्या हमारे गुरु को पुराने अंदाज़ में रहना हास्यास्पद न लगेगा? इसीलिए आज गुरु से शिक्षक हुए , फिर टीचर l पहले गुरुकुल में गुरु को साष्टांग प्रणाम करते थे , आज ‘ गुड मॉर्निंग टीचर ‘ कहते हैं l भावना और आत्मीयता को अर्थ ने पराजित कर दिया है l गुरु में नैतिकता होती थी, टीचर में बुद्धिवाद की प्रधानता हो गयी है l यदि ऐसा नहीं होता तो क्लास रूम में जाकर भी भला आधा फॉर्मूला ही क्यों बतलाते? सही लिखने पर भी आपको पूरा अंक नहीं देंगे और आपकी कॉपी भी नहीं दिखाएँगे क्योंकि आपकी बदौलत ही उन्होंने अपना कोचिंग इंस्टिट्यूट खोल रखा है l उसका किराया, फर्नीचर, बिजली बिल, नौकर – चाकर सबका वहन आधुनिक छात्र और अभिभावक ही तो करेंगे l आज वह अपनी उत्तम क्षमता का प्रदर्शन अवश्य करेंगे पर अपने विद्यालय में नहीं बल्कि इंस्टिट्यूट में l
भाई गाँधी जी बनने की क्षमता जिनमें है, उन्हें गाँधी जी अच्छे लगते हैं l विवेकानंद जी की रचना उन्हें ही अच्छी लगेगी जिनका विचार – साम्य होगा l आज न तो गाँधी जी हैं और न ही विवेकानंद जी l हम 5 सितंबर को शिक्षक – दिवस मनाते हैं, पर सर्वपल्ली राधा कृष्णन का जन्मदिन मनाने के लिए नहीं l यह ‘ ‘शिक्षक -दिवस ‘ तो उछल – कूद करने का , डिस्को – डांस करने का बहाना भर है l आधुनिकता के रंग में रंग कर छात्र अनुशासित कम और उद्दंड अधिक हो गए हैं l कुछ ही छात्र अनुशासित और मर्यादित होते हैं l इस परिस्थिति से निज़ात पाने के लिए
छात्रों को अनुशासनबद्ध होकर नवीन दृष्टिकोण आत्मसात् करना होगा l शिक्षकों को भी नैतिकता से परिपूर्ण होकर ईमानदारी से पढ़ाना होगा l शिक्षक और छात्र दोनों ही भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित कर नैतिक मूल्यों को पहचानें, तभी सर्वांगीण विकास सम्भव होगा l
आधुनिक टीचर को कबीर का यह सन्देश याद नहीं जिसमें उसे आदर्श बनने के लिए कहा गया है l
शिक्षक के लिए बालमनोविज्ञान समझना आवश्यक है l स्वयं को छात्रों के समक्ष मिसाल के रूप में पेश करना होगा l छात्रों को ही प्राथमिकता देनी होगी l उन्हें स्वार्थ का परित्याग करना होगा क्योंकि उसी कक्षा में भारत का भावी भविष्य बैठा होता है l कबीर की ये पंक्तियाँ चिरस्मरणीय बनी रहेंगी –
“गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है रचि – पचि काढ़े खोट l
अंतर हाथ सहार दै बाहर बाहर चोटl “
Author Name: Dr. Sushma Choubey,
Department: Hindi
Email-Id: sushma.hindi@patnawomenscollege.in