वर्तमान परिदृश्य और हिंदी की विविधता
वर्तमान परिदृश्य और हिंदी की विविधता
विविधता का अर्थ है धर्म, भाषा, बोली, संस्कृति आदि में एकरूपता का अभाव।जैसे भारत वर्ष विविध रूपी संस्कृति का देश है।उसी के अनुरूप यहाँ की भाषाएँ और बोलियां भी अलग अलग प्रकार की हैं—-
कोस कोस पर बदले पानी,
चार कोस पर वाणी।
हिंदी भी इसका अपवाद नहीं है।विश्व भर में प्रचुरता से बोली जाने वाली इस भाषा के अनेक रूप हैं, जो प्रचलित भी हैं और लोकप्रिय भी।हिंदी की अनेक शैलियां आज बड़े पैमाने पर प्रयुक्त हो रही हैं।कुछ प्रचलित शैलियाँ हैं-अंग्रेजी मिश्रित शैली,उर्दू मिश्रित शैली,संस्कृत निष्ठ शैली और तत्सम प्रधान शैली।
अंगरेजी प्रधान शैली का प्रयोग सोशल मीडिया ,जनसंचार के माध्यमों और बोलचाल में होता है।यह बहुत ही लोकप्रिय शैली है।अपनी सहजता से इसने हिंदी भाषा को एक नया और विस्तृत आयाम प्रदान किया है।जो लोग शुद्ध और क्लिष्ट हिंदी की जानकारी नहीं होने के कारण इस भाषा के प्रयोग से कतराते थे ,वे अब बेझिझक हिंदी बोलते हैं।इस शैली ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
हिंदी को लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचाने में बॉलीवुड की बहुत बड़ी भूमिका रही है।हिंदी फिल्मों में उर्दू मिश्रित हिंदी के प्रयोग को इस क्षेत्र ने ही स्थापित किया।प्रसिद्ध गीतकार इंदीवर ने फिल्म ‘सरस्वतीचंद्र’ के एक गाने का जिक्र करते हुए कहा था कि जब उन्होंने यह गीत लिखा-छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ,
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए। —- तो मुनासिब शब्द के प्रयोग पर खूब आपत्ति की गयी।इस शब्द को हटाकर हिंदी के किसी शब्द का प्रयोग करने के लिए उन पर बहुत दबाव डाला गया।लेकिन बहुत चाहने पर भी उन्हें इस शब्द की जगह हिंदी का कोई शब्द नहीं मिला।बाद में इस गाने ने लोकप्रियता का जो मुकाम हासिल किया,वह आज सब के सामने है।गुलज़ार और मनोज मुन्तजिर जैसे शायरों ने अपने नाम के साथ तो उर्दू शब्द जोड़ा ही है,अपने गीतों में भी हिंदी की इस शैली का खूब प्रयोग किया है।बालीवुड की फिल्मों के गीतों और संवादों में प्रचलित यह शैली अपने नज़ाकत के कारण उस क्षेत्र के लोगों के लिए भाषा के लिहाज़ से पहली पसंद बनी हुई है।
संस्कृतनिष्ठ हिंदी में तत्सम शब्दों की प्रधानता होती है,जिसके उत्कृष्ट उदाहरण जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा सहित अनेक साहित्यिक रचनाओं में उपलब्ध हैं।श्रुति मधुरता इस शैली की विशिष्ट पहचान है। जैसै-
वह पथिक क्या ,पथिक कुशलता क्या,
जिस पथ पर बिखरे शूल न हों।
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या
जब धाराएं प्रतिकूल न हों।।
तद्भव और देशज शब्दों का प्रयोग दैनिक जीवन से लेकर साहित्यिक रचनाओं तक में होता है।मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग इस शैली की अन्यतम विशेषता है।यह भाषा हमें मिट्टी की सोंधी सोंधी खुशबू का एहसास कराती है।
भाषा की विविधता किसी भी भाषा को समृद्ध करती है।हिंदी के विविध रूप भी इसे समृद्धि प्रदान करते हैं और यही कारण है कि आज यह सोशल मीडिया और जनसंचार-माध्यमों में बहुलता से प्रयुक्त हो रही है।
हिंदी के कुछ प्रचलित विविध रूप हैं—हिंग्रेजी, बोल-चाल की हिंदी, सरकारी कामकाज की हिंदी, विज्ञापनों की हिंदी, खेल-कूद की हिंदी, बाजारों की हिंदी, सिनेमा की हिंदी, सोशल मीडिया की हिंदी इत्यादि।
कुछ उदाहरण—-
जब वी मेट,टेस्ट में बेस्ट मम्मी और एवरेस्ट, ट्वेंटी ओवर में ढेर ट्वेंटी -ट्वेंटी के शेर, रायता फैलाना आदि।
अपने इस प्रचलित अवतार में हिंदी खूब फल फूल रही है और इसकी ये विविध शाखाएँ इसे विस्तारित कर इसके आकर्षण में और श्री वृद्धि कर रही हैं।
डाक्टर दीपा श्रीवास्तव
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी
पटना वीमेंस कालेज, पटना
संपर्क सूत्र….9523470179,9334753669
ई -मेल….deepa.hindi@patnawomenscollege.in